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जब कभी मौजें समुन्दर की करेंगी इन्किलाब / प्रेमचंद सहजवाला
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जब कभी मौजें समुन्दर की करेंगी इन्किलाब
मांग लेंगी सब तेरे आमाल का तुझ से हिसाब
खेलने वाले हुए हैं आज दुनिया के नवाब
पढ़ने-लिखने वाले दिखते हैं ज़माने को खराब
एक लम्हा ज्यों सदी और इक सदी जैसे कि पल
कौन समझेगा यहाँ अब वस्लो- फुरकत के हिसाब
जब कभी माज़ी ने पूछे दिल से कुछ मुश्किल सवाल
तब ज़माने-हाल ने ही दे दिए आसां जवाब
बैठ कर फुर्कत के सिरहाने सुलगती रात में
पढ़ रहे हैं वस्ल के ख्वाबों की इक सुन्दर किताब