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जब कविताएँ ... / चार्ल्स बुकोवस्की / अनिल जनविजय

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जब कविताएँ
एक हज़ार के क़रीब हो जाती हैं
तब आपको यह एहसास होता है
कि अभी तक आपने रचा है बहुत कम ।

बारिश, धूप, यातायात, सालों गुज़ारे रात और दिन
और चेहरे सब धुन्धले दिखाई देते हैं ।

उन्हें जीने के मुक़ाबले
उन्हें छोड़ना कहीं आसान लगता है,
सिर्फ़ एक लाइन लिखने का मन होता है
कि एक आदमी रेडियो पर पियानो बजाता है ।

अच्छे कवियों के पास
कहने को बहुत कम होता है
और बुरे कवियों के पास
बहुत ज़्यादा ।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय

और अब अँग्रेज़ी में यही कविता पढ़िए
          Charles Bukowski
           As The Poems Go

As the poems go into the thousands you
realize that you've created very
little.
it comes down to the rain, the sunlight,
the traffic, the nights and the days of the
years, the faces.
leaving this will be easier than living
it, typing one more line now as
a man plays a piano through the radio,
the best writers have said very
little
and the worst,
far too much.