भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब कहीं भी कोई फ़ैसला कीजिए / राम नाथ बेख़बर
Kavita Kosh से
जब कहीं भी कोई फ़ैसला कीजिए
बस सही को सही कह दिया कीजिए
चाहे कोई भी जग में ख़ता कीजिए
अपने महबूब को मत ख़फ़ा कीजिए
हो रही बेअसर मुझ पे हर इक दवा
मेरे हक़ में अभी से दुआ कीजिए
रुक गए तो समझिए वहीं मौत है
धीरे-धीरे सही पर चला कीजिए
दर्द आँखों से होकर उतर जाएगा
हो सके तो ज़रा रो लिया कीजिए
'बेख़बर' रूठकर दूर जाना नहीं
जो शिकायत है मुझसे कहा कीजिए