भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब किसी मुफ़लिस से हक़ माँगा शिवाला चल दिए / राम गोपाल भारतीय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब किसी मुफ़लिस से हक़ माँगा शिवाला चल दिए
छीनकर मज़लूम के मुँह का निवाला चल दिए

ग़र उसूलों की कहीं बाते कोई करने लगा
तो हँसी में बात को, लोगो ने टाला चल दिए

रोशनी घर-घर में पहुँचे दे रहे उपदेश जो
चुपके से सूरज उठा, जेबों में डाला चल दिए

जो निक़्क़मे हैं, अगर देखें, तमाशा ग़म नहीं
लोग अच्छे भी ज़ुबाँ पर डाल ताला चल दिए

इस क़दर है रहनुमाओ पर सियासत का जुनून
पुर-अमन लोगो में इक मुद्दा उछाला चल दिए

रास्ते में, दोस्तो, कुछ लोग ऐसे भी मिले
दोस्ती के नाम पर मतलब निकाला चल दिए