भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब की मैने बात अमन की / तारकेश्वरी तरु 'सुधि'
Kavita Kosh से
जब की मैने बात अमन की
रख ली उसने लाज़़ वचन की
उथली-गहरी हर रंगों की
झील बनी है मानव मन की
बच्चे के नन्हें पंखों ने
देखी थी मुस्कान गगन की
पवन जिधर की आग उधर की
बात न पूछो आज वतन की
मानव दे मौसम-सा धोखा
समझ गया है फितरत मन की
झुकती फसलें छूने भर से
लगती गहरी प्रीत पवन की
साथ निभाता मिट जाने तक
सच्ची यारी दीन-वसन की
हँसती कलियाँ विद्यालय की
बात निराली उस उपवन की