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जब की मैने बात अमन की / तारकेश्वरी तरु 'सुधि'

जब की मैने बात अमन की
रख ली उसने लाज़़ वचन की

उथली-गहरी हर रंगों की
झील बनी है मानव मन की

बच्चे के नन्हें पंखों ने
देखी थी मुस्कान गगन की

पवन जिधर की आग उधर की
बात न पूछो आज वतन की

मानव दे मौसम-सा धोखा
समझ गया है फितरत मन की

झुकती फसलें छूने भर से
लगती गहरी प्रीत पवन की

साथ निभाता मिट जाने तक
सच्ची यारी दीन-वसन की

हँसती कलियाँ विद्यालय की
बात निराली उस उपवन की