भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब कोई सर किसी दीवार से टकराता है / तलअत इरफ़ानी
Kavita Kosh से
जब कोई सर किसी दीवार से टकराता है
अपना टूटा हुआ बुत मुझको नज़र आता है
ख़ूब निस्बत है बहारों से मेरी वहशत को
फूल खिलते हैं तो दामन का ख़्याल आता है
तुम जब आहिस्ता से लब खोल के हँस देते हो
एक नग्मा मेरे अहसास में घुल जाता है
कितने प्यारे हैं तेरे नाम के दो सादा हरफ़
दिल जिन्हें गोशा-ए-तन्हाई में दोहराता है
आप से कोई तआरुफ़ तो नहीं है लेकिन,
आप को देख के कुछ याद सा आ जाता है
हाय क्या जानिए किस हाल में होगा कोई
आज रह रह के जो दिल इस तरह घबराता है
आप कहते हैं तो जी लेता है तलअत वरना,
कौन कमबख्त यहाँ साँस भी ले पाता है