भाँय-भाँय बजता है
सन्नाटा
सींग से सींग भिड़ाते शब्दों से शब्द
हाथापाई पर उतर आते हैं
पढ़ा जाता है
मंतब्यों को उलट कर
बदल जाती है
तर्कों की ध्वनियाँ
सूख जाती है
कटुता की आंच से
डंसती है भाषा
बन जाती है
द्विजिह्वा सर्पिणी
जब चुक जाते हैं रिश्ते।