भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब जब भी याद आयी तेरी आँख हुई नम / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
जब जब भी याद आयी तेरी आंख हुई नम
थोड़ी मिलीं मसर्रतें ज्यादा हैं बहुत ग़म
जो तुम ने दे दिया वो ज़माना न दे सका
हमने भी किया प्यार मगर तुम से बहुत कम
हम भूल ही पाते नहीं गुज़रा वो हादसा
जब याद रुलाती है तो जाता है दिल सहम
है फूलना फलना भी तो चुभता निगाह में
क्या कहिये ज़माने को है दिल में नहीं रहम
था साथ का वादा उसे तुम तो निभा गये
कितने हैं बदनसीब निभा ही न सके हम
पाँवों तले है रेत आफ़ताब फ़लक पर
जल भी नहीं पाते न मिला जख़्म को मरहम
है रौशनी नसीब में नहीं तो क्या करें
मंजिल है सामने मगर उठते नहीं कदम