भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब जब मनमोहन का रूप निहारा है / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब जब मनमोहन का, रूप निहारा है।
मेरे मन को मोहन, लगता प्यारा है॥

मत कहना यदुनन्दन, मथुरा से आया
माता जसुदा का वह, अंक दुलारा है॥

वृन्दावन का वासी, है वंशी वाला
नन्दनँदन पर मोहित, गोकुल सारा है॥

वह वृषभानु दुलारी, जो ग्वालन राधा
उसने मनमोहन पर, तन मन वारा है॥

यमुना तट पर करता, है गोचारण जो
उसके बल से सारा, अरि दल हारा है॥