जब तक साँस चलती जीना पड़ेगा ही 
जीने के लिए श्रम भी करना पड़ेगा ही ।
अमरित खोजते फिर तो रहे हैं हम 
जीवन ज़हर भी पर पीना पड़ेगा ही ।
जीने के लिए सामान तो हैं बहुत से 
इक दिन मगर सब को मरना पड़ेगा ही ।
बैसाखी लिए क्या पर्वत चढ़ोगे तुम 
अपने पाँव पर तो चलना पड़ेगा ही । 
मर-मर जी रहे हैं जग में हज़ारों ही 
जीने के लिए पर मरना पड़ेगा ही ।