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जब तक / सुशान्त सुप्रिय
Kavita Kosh से
जब तक स्थिति पर
क़ाबू पाने
पुलिस आती है
जल चुके होते हैं
दर्जनों घर आगज़नी में
जब तक
फ़्लैग-मार्च के लिए
सेना आती है
मारे जा चुके होते हैं
दर्जनों लोग दंगों में
जब तक शांति-वार्ता की
पहल की जाती है
आ चुकी होती है
एक बड़ी दरार मनों में
जब तक
सूरज दोबारा उगता है
अँधेरा लील चुका होता है
इंसानियत को