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जब तलक तुम पास, यौवन दास मेरा / श्यामनन्दन किशोर

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जब तलक तुम पास, यौवन दास मेरा!
राम जाने क्या पिलाया जाम तुमने
जो रखा मदहोश आठों याम तुमने!
तुम पवन-सा व्याप्त होकर चूमने दो!
बाँह में अपनी लहर-सा झूमने दो!
हे धरा मेरी रंगीली चिर निवेली
हे सितारों से जवाँ आकाश मेरा!

प्राण, संगति में तुम्हारी बन गया है
सिमट पूरा वर्ष ही मधुमास मेरा!

तुम जरा बोली, सुधा में ज्वार लाई
तुम हँसीं नंदन विपिन में लाज छाई!
तुम मिलीं जब से, कहीं ऊपर गगन के
स्वर्ग सुख का उठ गया विश्वास मेरा।

तृप्ति के उत्तप्त भर की प्यास हूँ मैं,
छोड़ जग आया तुम्हारे पास हूँ मैं
है तुम्हारी गोद में हरद्वार, काशी
है तुम्हारी बाँह में संन्यास मेरा!

(14.5.51)