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जब तुम्हारी यादों की मैं मस्तियाँ ले कर उठा / अमरेन्द्र

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जब तुम्हारी यादों की मैं मस्तियाँ ले कर उठा
तो जमाना भी मेरे संग गालियाँ ले कर उठा

बुझ गया मैं खुद, बचाता क्या चिरागों को भला
इस कदर वह हर तरफ से आँधियाँ ले कर उठा

नाउमीदी की घटाएँ ले के फिर वह आ गया
मैं भी उम्मीदों की अपनी बिजलियाँ ले कर उठा

था कठिन धरती को ऊपर तक उठाना इसलिए
तेज निकला वह जो ऊपर आसमां ले कर उठा

जानता था-कद्र क्या मेरा करेंगे लोग ये
मैं उठा तो अपने सब नामो निशां ले कर उठा

कुछ हवा कुछ रोशनी मुझको भी शायद मिल सके
इसलिए आकाश तक मै खिड़कियाँ ले कर उठा

जब तलक बैठा रहा हँसता रहा गाता रहा
जाते-जाते क्या हुआ जो सिसकियाँ ले कर उठा।