भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब तुम आते हो / माया एंजलो
Kavita Kosh से
जब तुम मेरे पास आते हो
अनामंत्रित
मुझे
लम्बे समय तक कमरे में धकेल देते हो
जहाँ स्मृतियाँ बैठी हुई हैं
पेश करते हो
बच्चे को जैसे सौंपी हो अटारी,
कुछ दिनों के समारोह
चोरी के चुम्बन-सी तुच्छ चीज़
उधार दे प्रेम का गहना
गुप्त शब्दों के लोहे की पेटी
और मैं रोती हूँ