भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब तुम इतना कह चुकोगे, तब वह / कालिदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: कालिदास  » संग्रह: मेघदूत
»  जब तुम इतना कह चुकोगे, तब वह

इत्‍याख्‍याते पवनतनयं मैथिलीवोन्‍मुखी सा
     त्‍वामुत्‍कण्‍ठोच्‍छ्वसितहृदया वीक्ष्‍य संभाव्‍य चैवम्।
श्रोष्‍यत्‍यस्‍मात्‍परमवहिता सौम्‍य! सीमन्तिनीनां
     कान्‍तोदन्‍त: सुहृदुपनत: संगमात्किंचिदून:।।

जब तुम इतना कह चुकोगे, तब वह
हनुमान को सामने पाने से सीता की भाँति
उत्‍सुक होकर खिले हुए चित्‍त से तुम्‍हारी
ओर मुँह उठाकर देखेगी और स्‍वागत
करेगी।
फिर वह सन्‍देश सुनने के लिए सर्वथा
एकाग्र हो जाएगी। हे सौम्‍य, विरहिणी
बालाओं के पास प्रियतम का जो सन्‍देश
स्‍वामी के मित्र द्वारा पहुँचता है, वह पति के
साक्षात मिलन से कुछ ही कम सुखकारी
होता होगा।