जब तुम जुदा हुए / सिराज फ़ैसल ख़ान
जब हम तुम जुदा हुए
ख़ामोश थे लब पलकों ने कहा था कुछ
आँखों में समन्दर भरना किसने सिखाया
कुछ याद है तुम्हें
याद तो करो
नीम के पेड़ के नीचे क्या खोया था?
मैंने ही तो छुपा ली थी तुम्हारी पायल
तुम बहुत देर तक रोती रही थीं और मैं
मन ही मन हँसता रहा था,
और वो चाँद वाली बात
झूठ बोला था तुमसे कि चाँद मेरा दोस्त है
मुझसे मिलने आता है आधी रात को
चाँद से बातें करने के लालच में तुम छुप-छुपकर मेरी छत पर आया करती थीं,
याद तो होगा झीलों के किनारे पहरों गुमसुम बैठे रहना
झूठ ही तो कह दिया था कि दोपहर को झील किनारे परियाँ आती हैं
और
तुम थीं कि चली आती थीं धूप में
कितना झूठा था मैं
तुम भी तो झूठी थीं,
सब कुछ समझकर भी अन्जान बनी रहती थीं...
तुम मुझसे भी ज़्यादा झूठी निकलीं
कभी नहीं बताया कि छोड़कर चली जाओगी एक दिन
अकेला कर दोगी मुझे
झूठी तुम चली गईं
अब सच मेँ चाँद मेरा दोस्त है
बातें करता है मुझसे
और
झील किनारे परियाँ भी आती हैं मिलने
मगर
अफसोस अब तुम नहीं हो मेरे पास
मगर तुम्हारी पायल आज भी है,
ये झूठ नहीं बोलती क्योंकि अब मैं सच बोलने लगा हूँ.....
रात सुबह के इंतज़ार मेँ ख़त्म हो जाती है
और
दिन भर रात होने का इंतज़ार करता हूँ
गुज़र रहा था उधर से कल फिर तुम्हारा घर देखा
उजड़ा सा बरामदा
अधखुली खिड़की
धूल मेँ डूबा दरवाज़ा
गमले मे लगा सूखा गुलाब
अधखुली आँखों मेँ तैरता ख़्वाब,
अब रोज़ ही उधर से गुज़रने लगा हूँ
मगर
अब कोई ख़त
या
फूल ऊपर से नहीं गिरता
फिर भी मैँ झुक जाता हूँ यूँ ही,
जाने वाले तू सब ले गया पुराने दिन, ख़ुशबू, रंग, तितली, सुकून और
न जाने क्या-क्या ?