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जब तुम नहीं होते तो जवानी मेरी / जाँ निसार अख़्तर
Kavita Kosh से
जब तुम नहीं होते तो जवानी मेरी
सोते की तरह सूख के रह जाती है
तुम आनके बाँहों में जो ले लेते हो
यौवन की नदी फिर से उबल आती है