जब तुम मेरे सम्मुख होती हो / कुँवर दिनेश
तुम मेरे सम्मुख हो
तुम मुझे देख रही हो
क्या देख रही हो तुम-
मेरे मुख को
जो दमक रहा है
तुम्हारे मुखमण्डल के
प्रत्याभ से;
देखो मेरे मस्तक को
जिस पर कान्ति है
तुम्हारे मस्तक की;
देखो मेरी आँखों को
जो देदीप्यमान हैं
तुम्हारी अक्षिमयूख से;
देखो मेरे कानों को
जो अब सुनने लगे हैं
उन शब्दों को भी
जो तुमने
एक लम्बे अंतराल से
रोक रखे हैं अपने मुंह में;
देखो मेरे अधरों को
जो कम्पायमान हैं
तुम्हारे अधरों की तरंगों से;
आभास लो
मेरी उष्णतर श्वास का
जो बना रही है सेतु
तुम्हारी श्वास तक।
देखो यह सब होता है
जब कभी तुम
मेरे सम्मुख होती हो
मैं हो जाता हूँ
प्रज्वलित,
कम्पित,
स्पंदित,
तरंगित,
मेरे कर्ण हो जाते हैं
सूक्ष्मश्रवा,
मेरी श्वास हो जाती है
उष्णतर,
और मैं हो जाता हूँ
पूर्णत: अशान्त, विचलित,
जब कभी तुम
मेरे सम्मुख होती हो।