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जब तेरे आशीष से बेटा नाकारा मिल गया / सूरज राय 'सूरज'
Kavita Kosh से
जब तेरे आशीष से बेटा नाकारा मिल गया।
सच कहूँ माँ मुझको जादू का पिटारा मिल गया॥
अब कहाँ तैराक मैं औ मेरी तैराकी कहाँ
डूब जाने का मुझे तेरा इशारा मिल गया॥
रफ़्ता-रफ़्ता उंगलियाँ कसने लगीं मज़दूर की
कांपती उन मुðियों को कोई नारा मिल गया॥
खो गया था मुझसे मेरा और तुझसे तेरा मैं
साथ में ढूंढा तो देखा हम हमारा मिल गया॥
आख़िरी हिचकी से पहले टिक गई दर पर नज़र
टुटती माला को शायद कुछ सहारा मिल गया॥
अब मेरे विश्वास का तामीर हो जायेगा घर
दर्द की ईंटें मुझे उल्फ़त का गारा मिल गया॥
अब नहीं दरकार "सूरज" की शुआओं की कोई
मुझको मेरी ही चिता का इक शरारा मिल गया॥