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जब नज़र आप की हो गई है / फ़िराक़ गोरखपुरी
Kavita Kosh से
जब नजर आप की हो गई है
ज़िन्दगी, ज़िन्दगी हो गई है
बारहा बर-खिलाफ़-ए-हर-उम्मीद
दोस्ती, दुश्मनी हो गई है
है वो तकमील पुरकारियों की
जो मेरी सादगी हो गई है
तेरी हर पुरशिश-ओ-मेहरबानी
अब मेरी बेकसी हो गई है
भूल बैठा है तू कह के जो बात
वो मेरी ज़िन्दगी हो गई है
बज़्म में आंख उठाने की तक्सीर
ऐ फ़िराक, आज भी हो गई है