मैं
एक समर्थ माँ
चलती हूँ उठाकर
ढेर-सी जिम्मेदारियाँ
घर और बाहर की
थक जाती हूँ जब
लेटकर कुछ क्षण
तुम्हारे पास
लिपटा लेती हूँ तुम्हें
तुम्हारी नन्हीं अंगुलियाँ
सहलाने लगती हैं
मेरे गालों और बालों को
तब अनायास
फुर्र हो जाती है थकान
बन जाती हूँ
मैं...एक नन्हीं बच्ची
और तुम...
मेरी माँ...।