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जब बहुत कुछ / रश्मि भारद्वाज
Kavita Kosh से
जब बहुत कुछ हो आस पास
जिसका बदलना हो ज़रूरी
और जानते हैं आप
कि नहीं बदला जा सकता कुछ भी
तो उपजती है कविता
हताशा है कविता
जब दफ़न करना पड़े हर प्रश्न
और सन्नाटे बुनने लगें उत्तर
घायल करने लगे ख़ुद को
अपना ही मौन
तो लिखी जाती है कविता
सवाल है कविता
जब किश्त-दर-किश्त
जीवन करता रहे साज़िशें
और टूटती जाए उसे सहेजे रखने की हिम्मत
तो बनती है कविता
उम्मीद है कविता
कविता उस छीजते समय की रस्सी पर
पैर जमाए रखने की है कोशिश
जिसके एक और अन्त है
तो दूसरी ओर हार