भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब बाजे पायलिया / सुभाष चंद "रसिया"
Kavita Kosh से
जब बाजे पायलिया तोहार सजनी।
सप्त सरगम के पड़े फुहार सजनी॥
सात अजूबा में एक अंश प्यार बाटे।
खण्ड-खण्ड सप्त खंड धरती के बाटे।
नीले अम्बर में बिहसेला प्यार सजनी॥
जब बाजे पायलिया तोहार सजनी॥
पीपर पात अब सरस् मन डोले।
तोहरा देखि लोगवा बोली बोले।
हमरी बगिया में आईल बहार सजनी॥
जब बाजे पायलिया तोहार सजनी॥
पोरे-पोरे थिरके रुके नाही पाऊवा।
चाँद निकल अइले अचके में गऊवा।
बिना माँगे मिलल उपहार सजनी॥
जब बाजे पायलिया तोहार सजनी॥
सम्मुख भईला पर निकसे ना बतिया।
भाव में विभोर अब हो गइले "रसिया" ।
अब होला ना हमसे इन्तजार सजनी॥
जब बाजे पायलिया तोहार सजनी॥