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जब बेअसर थी प्रेम से हर बात की खुराक / अशोक अंजुम

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जब बेअसर थी प्रेम से हर बात की खुराक
तब दीं उसे हुजूर ने कुछ लात की खुराक

कितना भी गिफ्ट दो उसे टेढ़ा ही रहे मुँँह
पत्थर को यूँँ न बाँँटिए ज़ज्बात की खुराक

दावत से जब न काम चला खेत चर गए
बापू से जुट सकी न जो बारात की खुराक

देखा सुबह तो खूब फफोले थे जिस्म पर
कल रात उसने ले ली कई रात की खुराक

दलदल हो राजनीति में तो उसकी बला से
नेता को है मुफीद जात-पात की खुराक