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जब भी आँखों ने मेरी ख़्वाब तुम्हारे देखे / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
जब भी आँखों ने मेरी ख़्वाब तुम्हारे देखे।
जैसे ज़न्नत के कई मस्त नज़ारे देखे॥
वो धमाका था कि थी राख वह शमशानों की
देह टुकड़ों में बंटी उड़ते शरारे देखे॥
कल सुहागन थी हुई आज अचानक बेवा
मांग में जिसकी सजे हमने सितारे देखे॥
तिश्निगी रूह में उतरी है तमन्ना-सी अगर
काफ़िले प्यास के दरिया के किनारे देखे॥
राखियाँ रोयीं सिसकती रही बिंदिया फिर भी
जां हथेली पर लिये माँ के दुलारे देखे॥
कल तलक आसमान चूम रहीं मीनारें
आज खँडहर हैं हुए वक्त के मारे देखे॥
है दिशाओं को अँधेरों ने घने घेर लिया
पौ भी फूटेगी जहाँ डूबते तारे देखे॥