भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब भी उर्यां ये ख़ामुशी होगी / सूरज राय 'सूरज'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब भी उर्याँ ये ख़ामुशी होगी।
शोर की चीख़ आख़िरी होगी॥

सूख जायेगी जिस्म की बोतल
बोतले-मय सदा भरी होगी॥

ये जगह लग रही है दिल की तरह
लाश कोई यहाँ दबी होगी॥

आज चूल्हे में जला है ईमां
अब तो बस राख़ ही बची होगी॥

ज़ुल्म समझेगा मेरी चुप्पी है
मेरी नज़रों में ख़ुदकशी होगी॥

ख़ुद ही ख़ुद को कहे बड़ा शायर
पास चोरी की शायरी होगी॥

रात दर इसलिए नहीं खोला
मैं ये समझा था ज़िन्दगी होगी॥

आईना तो दुरुस्त है तेरा
देखने में कोई कमी होगी॥

आज बस माँ के होंठ कांपे हैं
बाप की आँख में नमी होगी॥

हर ग़लत बात यही पूछती है
बात तेरा कभी सही होगी॥

रो दिया इस सवाल पर "सूरज"
क्या तेरे घर में रौशनी होगी॥