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जब भी कोई ग़म नया हमको मिला / ज़ाहिद अबरोल
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जब भी कोई ग़म नया हम को मिला
फ़ल्सफः इक ज़ीस्त का हम को मिला
अहल-ए-ग़म की ग़मगुसारी के लिए
एक दिल बेआसरा हम को मिला
क्या करें वक़्त-ए-सहर ही दोस्तो!
एक आलम शाम का हम को मिला
जब किसी भी राह में भटके हैं हम
मंज़िलों का कुछ पता हम को मिला
ज़िन्दगी ख़ुद ही मिटा कर दोस्तो!
इक अजब आराम सा हम को मिला
मौत की आग़ोश में बैठे हुए
ज़िन्दगी का रास्ता हम को मिला
सब ख़ता अपनी ही है “ज़ाहिद” यहां
जो मिला है बेख़ता हम को मिला
शब्दार्थ
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