Last modified on 18 मार्च 2019, at 21:45

जब भी खुद की तलाश होती है / रंजना वर्मा

जब भी खुद की तलाश होती है
जिंदगी बेलिबास होती है

तोड़ देता है ग़म बहुत दिल को
फिर भी जीने की आस होती है

भीगी आँखे लरजते होठों पर
इक अजानी-सी प्यास होती है

क्या ग़ज़ब है कि मसर्रत में भी
रूह बेहद उदास होती है

ढूँढ़ते हैं जिसे ज़माने में
वो खुशी दिल के पास होती है