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जब भी खुद की तलाश होती है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
जब भी खुद की तलाश होती है
जिंदगी बेलिबास होती है
तोड़ देता है ग़म बहुत दिल को
फिर भी जीने की आस होती है
भीगी आँखे लरजते होठों पर
इक अजानी-सी प्यास होती है
क्या ग़ज़ब है कि मसर्रत में भी
रूह बेहद उदास होती है
ढूँढ़ते हैं जिसे ज़माने में
वो खुशी दिल के पास होती है