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जब भी जीवन में हार जाना तुम / हरि फ़ैज़ाबादी
Kavita Kosh से
जब भी जीवन में हार जाना तुम
सार गीता का गुनगुनाना तुम
हार का ग़म लगे सताने जब
अपनी भूलों पे खिलखिलाना तुम
दूर दुनिया से जो तुम्हें कर दें
ऐसी बातें नहीं बढ़ाना तुम
नीतियाँ दोहरी हैं नहीं अच्छी
जीने का इक नियम बनाना तुम
बोझ जीवन पे चाहे जितना हो
हौसला अपना मत घटाना तुम
वक़्त कैसा भी सामने आये
अपना किरदार मत गिराना तुम
तुमको कोई कमी नहीं होगी
बस बुजु़र्गों को मत भुलाना तुम