भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब भी नाम हमारा आये/ गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


जब भी नाम हमारा आये
नयन झुका, मुँह मोड़, दाँत से रहना होँठ दबाये

साँस दीर्घ भी लेना ऐसे दोनों हाथ उठाये
समझें जमुहाई सब, कोई आँसू देख न पाये

पलकें मलती रजकण के मिस, मन की व्यथा छिपाये
उँगली की मुद्रिका फिराती रहना दायें -बायें

जब भावों का ज्वार न सँभले छाती रूँध सी जाये
कहना उठ कर- अब चलना है साँझ हुई घन छाये