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जब भी मिरा ख़ालिक मुझे ईजाद करेगा / तसनीफ़ हैदर
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जब भी मिरा ख़ालिक मुझे ईजाद करेगा
हर तरह से मजमुआ-ए-इज़्दाद करेगा
मैं लौट के फिर उस की ही जानिब न चला आऊँ
वो सोच समझ कर मुझे आज़ाद करेगा
हम को तो ये ख़ुश-फ़हमी नहीं हैं कि ज़माना
जब हम नहीं होंगे तो हमें याद करेगा
अब भी मुझे है उस चाँद-बदन से
इक रात वो मेरे लिए बर्बाद करेगा
पहले वो उजाड़ेगा बुरी तरह से मुझ को
फिर मुझ में बसेगा मुझे आबाद करेगा
बस देखने आ जाएगा यूँ ही मुझे इक दिन
ये काम अगरचे वो मिरे बाद करेगा
इस काम में मसरूफ़ रहेगा कहीं दिन भर
तय्यार मगर रात को शब-ज़ाद करेगा