Last modified on 7 नवम्बर 2023, at 23:50

जब भी लड़की उदास होती है / हरिवंश प्रभात

जब भी लड़की उदास होती है।
माँ की ममता की आस होती है।

खेलना वक़्त का तक़ाज़ा था,
कोई गुड़िया जो पास होती है।

गूँजती रहती है ये ख़ामोशी,
कब हँसी की तलाश होती है।

रस्सी उछला के जो उछलती थी,
वो गले की भी फाँस होती है।

करती हैं तितलियाँ जो आकर्षित,
बात कुछ उनमें ख़ास होती है।

उसको हर हाल में बचा ‘प्रभात’,
लड़की घर की लिबास होती है।