भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब भी वह आता है / विपिन चौधरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह जब भी घर के भीतर प्रवेश करता
एक नयी भाषा उसके बगल में होती

उस भांप छोड़ती हुयी ताज़ा भाषा को
गुनगुनाती हुयी स्त्री सिलबट्टे पर पीस
अपनी देह पर देर तक मलती

वह फिर घर से बाहर जा कर एक नयी भाषा ईजाद करता
सौंपता उसे
स्त्री फिर उस नयी भाषा का हरसंभव बेहतर इस्तेमाल करती

कायल होती अपने मर्द के हुनर पर
होती अपनी बेबसी पर हैरान

बरसों-बरस
बर्तन-भांडों, झाड़ू-पौछा, बिस्तर-मेज़-कुर्सी के बीच रह कर स्त्री
अपनी कोई भाषा नहीं बना सकी
एक दिन जब उसने अपनी भाषा बांचने की ठानी
उस दिन उसका मर्द समुंदर के बीचों बीच था
और वह स्त्री समुंदर के उस पार