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जब भी सर चढ़ के बहा है दरिया / नवीन सी. चतुर्वेदी

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जब भी सर चढ़ के बहा है दरिया
सब की आँखों में चुभा है दरिया

आब को अक़्ल भी होती है जनाब
कृष्ण के पाँव पड़ा है दरिया

ख़ुद-ब-ख़ुद अपनी हिफ़ाज़त करना
राम को लील चुका है दरिया

बेकली से ही उपजता है सुकून
जी! सराबों का सिला है दरिया

बाक़ी दुनिया की तो कह सकता नहीं
मेरी धरती पे ख़ुदा है दरिया

ख़ुद में रखता है अनासिर सारे
एक अजूबा सा ख़ला है दरिया