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जब भी सूरज इधर आए / कुमार रवींद्र

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जब भी सूरज इधर आए
तुम उससे कहना
               यहीं रहे वह

पता नहीं
किस अंध-गुफा में वह है सोया
खुला हुआ आकाश यहाँ था
वह भी खोया

नदी सदानीरा थी अपनी
          उससे कहना
                 यहीं बहे वह

इस घाटी में
फूलों का इतिहास रहा है
कल्पवृक्ष था यहीं
किंतु वह रात ढहा है

बचा आखिरी पत्ता, साधो
           उससे कहना
                   नहीं दहे वह

नदी-धूप-पेड़ों के क़िस्से
सुनते बच्चे
दुआ करो
कि उनके सपने होंवे सच्चे

गीत तुम्हारा जो कुछ सोचे
             उससे कहना
                    वही कहे वह