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जब भी हम कुछ देर सुस्ताने लगे हैं / तलअत इरफ़ानी
Kavita Kosh से
जब भी हम कुछ देर सुस्ताने लगे हैं
शहर पर आसेब मंडराने लगे हैं
किस का साया आ पड़ा सिहने चमन पर
क्यारी क्यारी फूल मुरझाने लगे हैं
अब यहाँ कोई नहीं सुनता किसी की
अपना अपना राग सब गाने लगे हैं
किस ने चौराहे पे क्या टोना किया है
आते जाते लोग चिल्लाने लगे हैं
फिर ज़मीं की नाफ़ टेढी हो चली है
फिर समंदर झूम कर गाने लगे हैं
आस्मां लोहे का छल्ला है जिसे हम
हर छ्टी उंगली में पहनाने लगे हैं
नींद अब तलअत हमें आए न आए
अधखुली आंखों में ख़्वाब आने लगे हैं