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जब मर्द बच्चे जनेंगे / मनोज श्रीवास्तव

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जब मर्द बच्चे जनेंगे

समय आ रहा है
जबकि पत्नियां
नए सिरे से लड़ेंगी--
'पहला गर्भ तुम धारण करो
बाद में मैं करूंगी'
पति, बच्चे जनते-जनते
थक-छक जाएंगे
नाज़ुक-निरीह
अबला बन जाएंगे
 
तब, मर्दाना गंध से
रची-बसी रसोई
छमछमाहट-खनखनाहट को
तरस जाएगी,
स्टोव, बर्तन, बाल्टी, कनस्तर
मर्दानी मनहूसियत से
मितलाने लगेंगे,
औरत के रसोई से
प्राचीन संबंधों पर
कहकहे लगाए जाएंगे
चुटकले कहे जाएंगे,
पुरुष कायर औरतों से
चूड़ियाँ पहनकर बैठने
का ताना देंगे,
तब, पौराणिक दासियों पर
औरतें घिनौनी हंसी हँसेंगी
मौजूदा घूंघटदार औरतों पर
तरस खाएंगी

आन्दोलन, अनशन, हड़ताल
होंगे निरीह पुरुषों के हथियार,
जब चुनिन्दा मर्दाने हाथ
क्रूर औरतों पर
उठने का दुस्साहस करेंगे
जनानी सत्ता उन्हें तोड़ देगी,
मर्द विकलांगों जैसे
आंगनों में रेगेंगे,
चारदीवारियों में सुबुकेंगे
और बच्चे उन्हें ढाढस देंगे

स्त्री दासता में जकड़ चुके मर्द
सरेआम सामूहिक
बलात्कृत होने के भय से
अकेले नहीं निकला करेंगे,
जब उनके बेटों को
जन्मते मार दिया जाएगा
वे संसद के सामने धरना देंगे,
भ्रूण-हत्या रोकने के लिए
कानूनी दखल की गुहार करेंगे
सार्वजनिक स्थानों पर
हुई छेड़खानियों के खिलाफ
अपनी पत्नियों के साथ ही
थाने रपट लिखाने जाया करेंगे

आतंकित मर्द
सार्वजनिक प्रदर्शन करेंगे
अपनी मुक्ति और उद्धार
स्त्रियों के बराबर अधिकार
समान सामाजिक भागीदारी
हेतु पुरजोर मांग करेंगे,
पुरुष-आरक्षण की वकालत करेंगे

तब, उदार औरतों का भी
कोई गुट होगा
जो 'पुरुष बचाओ' मंच गठित करेगा
बेशक! चंद मानवतावादी औरतें
पिटते-लुटते मर्दों
के समर्थन में
सड़कों पर उतर आएंगी
जुलूसें निकालेंगी
नारे लगाएंगी
पम्फलेट बाटेंगी
पर, जनानी हुकूमत भी
लूली-लंगड़ी-अंधी-बहरी होगी

एक ऐसे ही युग में
कोई आदर्शवादी स्त्री-वैज्ञानिक
ऐसा उभयलिंगी रोबट तैयार करेगी
जो गर्भधारण करेगा
बच्चे पैदा करेगा
और पुरुषों के कंधे पर
गृहस्थी का बोझ हल्का करेगा,
संभवत: मर्द-औरत का अंतर
यहीं ख़त्म होगा
और मानवीय सभ्यता का
यहीं अंत होगा.