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जब मिली संगत / संतोष श्रीवास्तव

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भावों ने शब्दों की संगत पा
 लिपिबद्ध कर लिया महाकाव्य
 सर्गों, उपाख्यानों ,कांडों का
हो गया विस्तार

राम आये,कृष्ण आये
लीलाएँ समन्वित होती रहीं
छंदों ,अलंकारों ,रसों की
रसधारा से
विभिन्न चरित्रों के प्रेम ,आवेग
 कर्तव्य, समर्पण को
समाहित कर
हहरा उठा भक्ति का सागर

महाकाव्य न रचा जाता
तो कैसे जान पाता संसार
अवतारों का स्वरुप

यह शब्दों,भावों, विचारों ,
बिंबों ,प्रतीकों की ही तो
संगति है
जो रचे गए महाकाव्य
राम और कृष्ण हो गए
संस्कृति की प्रमुख पहचान