भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब मैं मर जाऊँगी, प्रिय ! / हालीना पोस्वियातोव्स्का

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: हालीना पोस्वियातोव्स्का  » जब मैं मर जाऊँगी, प्रिय !

जब मैं मर जाऊँगी, प्रिय
जब छोड़ दूँगी यह दुनिया
बन जाऊँगी चीज़ वह बेचारी, जिसे सँभाल नहीं पाए तुम ।

तुम मुझे हथेली पर उठा लोगे
और इस पूरी दुनिया से छुपा लोगे
पर क्या तब बदल सकोगे तुम भाग्य को ?

मैं तुम्हारे बारे में सोचती हूँ
मैं तुम्हें पत्र लिखती हूँ
मेरी भोली बातों में रहता है मेरा प्यार ।

सारे ख़त मैंने वे छुपा रखे हैं चूल्हे में
हर पंक्ति में उनकी आग छुपी है
जब तक मैं सो नहीं जाती इस अकेलेपन की राख में ।

प्रिय, देखती हूँ लपट को और सोचती हूँ
क्या होगा मेरे इस बेचैन मन का
जो चाहता है तुझे ?

तुम मुझे मेरे प्रिय
मरने नहीं दो इस दुनिया में
जो इतना ठंडी है, काली है, मेरे दर्द की तरह ।

रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय