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जब याद तुम्हारी आती है / छाया त्रिपाठी ओझा
Kavita Kosh से
इस दुनिया से उस दुनिया तक
राह कहाँ से जाती है।
हिय में उठता प्रश्न यही जब
याद तुम्हारी आती है।
सब कुछ पाकर भी लगता है
जैसे जीवन व्यर्थ हुआ !
बिना तुम्हारे कैसी दुनिया
क्या जीने का अर्थ हुआ !
क्यों अतीत की बात हमें
हरदम इतना तडपाती है।
हिय में उठता प्रश्न यही
जब याद तुम्हारी आती है।
एक तुम्हारे ना होने से
सूर्य अस्त ज्यों आज हुआ !
धरा छोड़कर गया उजाला
अँधियारे का राज हुआ !
चुपके चुपके नयनों में बस
केवल बदली छाती है।
हिय में उठता प्रश्न यही
जब याद तुम्हारी आती है।
हाथो में थामें बैठी हूँ
किस्मत जो लेकर आई !
छोड़ गये जबसे तुम मुझको
करूँ दुखों से सिर्फ लड़ाई !
मगर भावना इस मन की
बस पल पल तुम्हें बुलाती है।
हिय में उठता प्रश्न यही
जब याद तुम्हारी आती है।