जब याद तुम्हारी आती है / लोकमित्र गौतम
अगर बिना व्यंजना या विशेषण कहूँ
तो जब याद तुम्हारी आती है
दिल बड़ा बड़ा सा महसूस करने लगता है
तमाम बड़ी बड़ी समस्याएं मामूली सी लगने लगती हैं
तुम्हारी याद आ जाए और नल में पानी न आये
तो भी म्युनिस्पलटी को गाली देने का मन नहीं करता
बिजली के बिना भी गर्मी सहनीय हो जाती है
और मन भूल जाता है सरकार को कोसना
तब चुभती नहीं है सरकार की अनदेखी
जब दिल में कब्ज़ा किये होती है तुम्हारी याद
मैं ऐसा नहीं कहूँगा कि हमेशा से ही ऐसा था
एक दौर था जब मैं भी तुम्हारी याद में बहुत बेचैन हो जाता था
कुछ अच्छा नहीं लगता था
भूख प्यास सब खत्म हो जाती थी
बेचैन मन अकुलाया अकुलाया सा हर तरफ भटकता रहता था
पर अब ये सब किस्से पुराने हो चुके हैं
जैसे अमीर हो जाने के बाद पुरानी गरीबी भली भली सी लगने लगती है
उससे एक आत्मीय रिश्ता महसूस होने लगता है
क्योंकि वह बिना कहे हमारी कामयाबी का परचम बुलंद करती है
हमारे सामान्य कद को आदमकद बनाती है
मेरे लिए कुछ उसी तरह की कहानी अब तुम्हारी यादों के साथ है
हो सकता है आज तुम मेरे साथ होते तो मेरा कद इतना बड़ा न होता
क्योंकि होना, न होने की तमाम असीमताओं को सीमित कर देता है
सत्य कल्पनाओं को विराम दे देता है
यही उसकी सीमा है ..सत्य की यही साधारणता है
..और साधारण चीजो से सिर्फ गुज़ाराभर होता है
चाहे दौलत हो या उल्फत
हो सकता है हम मिले होते तो मुहल्ले का सबसे झगडालू जोड़ा होते
नून तेल लकड़ी में उलझे रहते
और उस दौलत के कभी दरवाजे तक भी नहीं फटकते
जिसका कम से कम मैं तो आज स्वामी हूँ
सुनो! तुम्हें अपने बचपन का एक किस्सा सुनाता हूँ
बचपन में मुझे जागते हुए सपने देखने की आदत थी
पुस्तकालय में बैठा होता
सामने मायकोवस्की की कविताओं की किताब खुली होती
लेकिन मैं वहां नहीं होता
मैं कल्पनाओं में हिसाब किताब में उलझा होता
मैं कल्पना करता कि अपने घर से निकला हूँ
अभी कुछ कदम चलकर दूसरी गली की तरफ मुड़ा ही हूँ
कि सामने देखता हूँ नोटों की एक गड्डी पड़ी है
मैं दौड़कर नोटों की गड्डी उठाता हूँ
अपने सपनो को साकार करने वाली दौलत..उठाता हूँ
..और शुरू कर देता हूँ गढ़ने सपनों के रंगमहल
नक्कासियाँ ,कंगूरे आकार
सब कुछ अपने मन का, सब कुछ सपनीला
सब कुछ,सब कुछ से अच्छा,सर्वश्रेष्ठ!!
अरे लेकिन ये क्या दौलत तो कम पड़ गयी?
लेकिन परेशानी की कोई बात नहीं
बस सपने की रील को थोड़ा रिवर्स ही तो करना है? कर देता हूँ
..इस बार गली के कोने में मिलने वाली
नोटों की गड्डी का आकार दुगना और ताकत तीन गुना कर देता हूँ
हाँ! ये ठीक है
अब जिस तरह का महल बनाने का ख्वाब है ,बन जाएगा
फिर नीव से शुरू करता हूँ
फिर नए सिरे से रचता हूँ
भव्य से भव्यतम...सपनों से भी सपनीला
ये मेरी बैठक होगी ..आलीशान ...दुनिया की सारी सुविधाओं से सजी
यहीं मैं अपने बचपन के जिगरी यारों के साथ बैठकर गप्पें लगाऊंगा
उन्हें हर पल यह अनुमान लगाने में बेचैन रखूँगा
कि मेरी इस सपनीली कामयाबी का राज क्या है?
ये होगा मेरा बागीचा
जहाँ मैं अपने सपनो की परी के साथ टहलते हुए ठंडी ठंडी हवाओं का आनंद लूँगा
बचपन में रुसी उपन्यास पढ़ते हुए हवेलियों के बगीचों का जो रोमांच
दिलोदिमाग में घुसकर बैठा है
मेरे बगीचे मनोहारी रूप देखकर वह रोमांच भाग जाएगा
लेकिन नहीं मैं उसे भागने नहीं दूंगा
उस रोमांच को इस बगीचे का माली बना दूंगा
जो मुझसे पूछ पूछकर मेरी पसंद के फूलों से मेरी पसंद के रंगों से
बगीचे का नक्शा तैयार करेगा
ये होगा मेरा आधुनिक अस्तबल
जहाँ दुनिया की सारी मंहगी से महंगी कारें ड्राइवरों के साथ खड़ी
मेरे इशारों का इंतज़ार करेंगी
ये है कुदरती झरनों से सुसज्जित मेरा स्नानागार
ये रहा ताजे और मीठे पानी से लहराता मेरा स्विमिंग पूल
ये देखो, ये है मेरा अध्ययनकक्ष
जहाँ दुनिया की सारी कीमती से कीमती, नयी से नयी और पुरानी से पुरानी
किताबें सजी होंगी!!!
ये है मेरे महल का भव्यतम परकोटा
यहाँ मैं अपनी जाने जहान के साथ सुरमई शाम में चाय की चुस्कियों का आनंद लूँगा
ये है मेरे महल का गोल्फ कोर्स
ये रहा रेस कोर्स
..अरे जरा एक मिनट रुकना
महल के पूरे नक़्शे को देखते हुए ये रेस कोर्स
थोडा छोटा नहीं लग रहा?
और ये इसका शेप भी सही नहीं लग रहा है
खासकर इसका टर्न
यह उल्टे मेहराब कट का है जबकि इसे धनुषाकार होना चाहिए
देखिये प्रबंधक महोदय ये रेसकोर्स का डिजाइन बदलिए
जैसा मैं कह रहा हूँ वैसा करिए
जी ...जी..वो तो ठीक है..मगर
मगर क्या , बोलिए?
अच्छा! सब ख़त्म ..सारा!!
..और इस तरह मुझे अपनी फंतासी का सफ़र फिर शून्य से शुरू करना पड़ता
कई बार सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक पुस्तकालय में बैठे हुए
मुझे अपनी फंतासी का सफ़र
दर्जनों बार नए सिरे से शुरू करना पड़ता
गली के कोने में मिलने वाले कुछ लाख रुपयों से शुरू होकर ये सिलसिला
नोटों की खान तक पहुँचता
तो भी अंत में ख्वाबों के महल को अधूरा ही छोड़ना पड़ता
क्योंकि चाहत का पैमाना हमेशा बड़ा निकलता
और दौलत कम पड़ जाती
इसलिए मुझे शक है कि हम तुम अगर मिले होते तो बहुत खुश होते
जितना आज मैं तुम्हारी यादों के साथ हूँ
तुम्हारी यादें अब मेरी चाहत के हर अधूरेपन को पूरा करती है
क्योंकि उन्हें मैं जब चाहूँ तब, जैसे चाहूँ,वैसे
रिवर्स कर सकता हूँ अपने मन मुताबिक
सच की कोई साधारणता इसके आड़े नहीं आती
इसलिए मैं अब बेचैन नहीं होता
सिर्फ रील भर रिवर्स करता हूँ
जब याद तुम्हारी आती है