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जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे / सौदा
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जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे
तब मैंने अपने दिल में लाखों ख़याल बाँधे
दो दिन में हम तो रीझे ऐ वाए हाल उन का
गुज़रे हैं जिन के दिल को याँ माह-ओ-साल बाँधे
तार-ए-निगाह में उस के क्यों कर फाँसे न ये दिल
आँखों में जिस की लाखों वहशी ग़ज़ल बाँधे
बोसे की है तो ख़्वाहिश पर कहिये क्यों के उस से
जिस से मिज़ाज-ए-लब पर हरफ़-ए-सवाल बाँधे
मारोगे किस को जी से किस पर कमर कसी है
फिरते हो क्यों प्यारे तलवार ढाल बाँधे
दो चार शेर आगे उस के पढे तो बोला
मज़मूँ ये तूने अपने क्या हस्ब-ओ-हाल बाँधे
"सौदा" जो उन ने बाँधा ज़ुल्फ़ों में दिल सज़ा है
शेरों में उस के तू ने क्यों ख़त-ओ-ख़ाल बाँधे