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जब राजकाज से हो नुक़सान / न्गुएन चाय / अनिल जनविजय

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जब राजकाज से हो नुक़सान,
न धर्म कोई सुख दे, न भगवान,
तुम मौन रहो, कोई किताब पढ़ो,
और इस तरह अपनी विजय गढ़ो !

समुद्र-तल को किरण छू न पाए
गहन अन्धेरे को प्रकाश न भाए
प्रभु का सेवक हूँ, मूर्ख और बोदा
नहीं चाहिए मुझे कोई भी ओहदा

रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय