जब रातों की बांहों में खो जाता हूँ
कुछ कुछ उनके ख़्वाबों में खो जाता हूँ
आंगन दर्पण दामन ये सब देखूं तो
अपने घर की यादों में खो जाता हूँ
मुझको मंज़िल मिलती है धीरे धीरे
मैं भी अक्सर राहों में खो जाता हूँ
मेरी सांसें ख़ुशबू-ख़ुशबू होती है
जब जब उनकी बातों में खो जाता हूँ
चलते चलते थक कर यूँ बैठूं जो मैं
पहले अपने पांवों में खो जाता हूँ