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जब रूह-ए-अवाम लुटेंगी / नीना कुमार
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					जब रूह-ए-अवाम लुटेंगी 
जब क़फ़स में साँसें घुटेंगी
और सब्र के बाँध टूटेंगे 
हाँ तब आवाजें उठेंगी 
जब दरीचे-लब खुलेंगें 
औ हवा में नगमे घुलेंगें 
जब इक सैलाब आएगा 
तब दाग-ए-ज़ुल्म धुलेंगें 
दरया का ख़ाक में मिलना 
दरख़्त, दीवार का हिलना 
देखेंगे के इसके बाद देखेंगे
फिर से बहार का खिलना
 
	
	

