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जब रे कवन दुलहा घरअ से बहार भेल / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

दुलहा विवाह करने चला। रास्ते में कोयल मिली। उसने छाया में बैठकर धूप गँवा लेने को कहा। दुलहे ने कहा- ‘मेरी दुलहन का लगन उतावला है, इसलिए मेरा रुकना ठीक नहीं। मुझे ऐसा आशीर्वाद दो कि जाते ही मेरा विवाह हो। लौटने पर तुम्हारी चोंच में सोना मढ़वा दूगा। कोयल आशीर्वाद देती है कि जाते ही विधिपूर्वक धूम-धाम से तुमरा विवाह होगा। दुलहा विवाह करके उस पेड़ के पास वापस आया और उसने अपना वचन पूरा करने के लिए कोयल की खोज की। यहाँ कोयल बहन का प्रतीक है।

जब रे कवन दुलहा घरअ सेॅ बहार भेल, ओहि रे बिरिछि तर ठाढ़ हे।
ओहि जे बिरिछि तर कोयलो जे बोलै, लेहो बाबू धूप गमाय हे॥1॥
हम कैसे धूप गँमायब हे कोयलो, लाढ़ो के लगन उताहुल हे।
ऐसन आसींक<ref>आशीर्वाद</ref> दीहें हे कोयलो, जैतहिं होयत बिहा<ref>विवाह</ref> हे॥2॥
जब हे कोयलो बिहा करि लबोटब, सोने मढ़ैबो दूनू ठोर हे।
सोना के सिलोटी बाबू चन्नन रगरू, सोना के चओंका<ref>चौंका, किसी अनुष्ठान के लिए आटे आदि से बनाया हुआ चौकोर चित्र, जिस पर बैठकर यज्ञ की विधि संपन्न की जाती है</ref> चढ़ि बैठब हे।
बाबू सोने मौरी<ref>मौर</ref> होयत बिहा हे॥3॥
जब रे कवन दुलहा बिहा करि लबोटल, ओहि बिरिछि तर ठाढ़ हे।
कहाँ गेलि किए भेलि कोयली जे सुन्नरी, सोने मढ़ैबो दूनू ठोर हे॥4॥

शब्दार्थ
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