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जब रोज़े-जज़ा होगी अदालत तेरी / रतन पंडोरवी

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जब रोज़े-जज़ा होगी अदालत तेरी
करने का नहीं कोई शिफ़ाअत तेरी
ऐसे में अकेला ही नज़र आयेगा
आमाल तिरे देंगे शहादत तेरी।

अल्ला रे ग़रीबों की निराली दुनिया
है चरख़े-बरीं से भी आली दुनिया
है दौलते-दीं फ़क़त ग़रीबों के लिए
इस शय से है ज़रदार की खाली दुनिया।

इफ्लास की आफ़त से बचाना या रब
ये ग़म ये मुसीबत न दिखाना या रब
अपने भी तो बेगाने नज़र आते हैं
इतना मुझे बेकस न बनाना या रब।

कहते हैं कि इफ्लास बुरा होता है
तूफ़ाने-ग़म-ओ-यास बुरा होता है
इफ्लास को समझो न बुरा तुम हरगिज़
इफ्लास का एहसास बुरा होता है।

सब लोग ग़रीबी को बुरा कहते हैं
तूफ़ाने-बला, कहरे-ख़ुदा कहते हैं
मैं रहमते-बारी ही समझता हूँ इसे
हैरान हूँ कम-फ़हम ये क्या कहते हैं।