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जब शिकायत थी कि तूफ़ाँ में सहारा न मिला / शमीम जयपुरी

जब शिकायत थी कि तूफ़ाँ में सहारा न मिला
अब किनारे पे भी आए तो किनारा न मिला

बे-सहारों को कहीं कोई सहारा न मिला
कोई तूफ़ाँ न मिला कोई किनारा न मिला

हाथ उट्ठे ही नहीं साग़र-ओ-मीना की तरफ़
हम को जब तक तिरी आँखों का इशारा न मिला

चल न सकता था कभी अहल-ए-हवस का जादू
तुझ को ऐ दोस्त कोई इश्क़ का मारा न मिला

जिस ने देखा हमें दुश्मन की नज़र से देखा
तेरी महफ़िल में कोई दोस्त हमारा न मिला

मौत बेहतर है ‘शमीम’ उस के लिए जीने से
जिस को जीने के लिए कोई सहारा न मिला