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जब सनम कूँ ख़याल-ए-बाग़ हुआ / वली दक्कनी

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जब सनम कूँ ख़याल-ए-बाग़ हुआ
तालिब-ए-नश्शा-ए-फ़राग़ हुआ

फ़ौज-ए-उश्शाक़ देख हर जानिब
नाज़नीं साहिब-ए-दिमाग़ हुआ

रश्क सूँ तुझ लबाँ की सुर्ख़ी पर
जिगर-ए-लाला दाग़-दाग़ हुआ

दिल-ए-उश्शाक़ क्यूँ न हो रौशन
जब ख़याल-ए-सनम चराग़ हुआ

ऐ 'वली' गुल-बदन कूँ बाग़ में देख
दिल-ए-सद-चाक बाग़-बाग़ हुआ