भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब सें तुम आ जा रये घर में / महेश कटारे सुगम
Kavita Kosh से
जब सें तुम आ जा रये घर में
हल्ला भऔ मुहल्ला भर में
मौका है तौ मन की कैलो
बखत नें काटौ अगर मगर में
मिलवे कौ नईं होत महूरत
मिलौ सवेरें साँझ दुफर में
देखौ कौल करार करे हैं
छोड़ नें जइयौ बीच डगर में
रोग प्रेम कौ पलत सबई में
नारायन होवें कै नर में
प्रीत की खुशबू ऐसी होवै
सुगम नें मिलहै कभऊँ अतर<ref>इत्र</ref> में
शब्दार्थ
<references/>